
होके मायुस ना यु शाम की तरह ढलते रहिये,
जिन्दगी एक भोर है सुरज कि तरह निकलते रहिये,
ठहरोगे एक पाव पर तो थक जाओगे,
धीरे धीरे ही सही मगर राह पर चलते रहिये..
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तुम्हारे जैसे हमने देखनेवाले नहीं देखे |
जिगर में किस तरह से रंजो ग़म पाले नहीं देखे ||
यहाँ पर जात मजहब का हवाला सबने देखा है|
किसी ने भी हमारे पाओं के छाले नहीं देखे ||
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कदम उठने नहीं पाते, के रास्ता काट देता है|
मेरे मालिक मुझे आखिर तू कब तक आजमाएगा||
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हमने भी सोकर देखा हैं नए पुराने सहरो में
पर जैसा भी हो अपने गर का बिस्तर अच्छा लगता हैं
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ठिकाना कब्र है तेरा, इबादत कुछ तो कर ग़ाफिल,
कहावत है कि खाली हाथ घर जाया नहीं करते..
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फ़िक्र-ऐ -ज़िन्दगी ने थोड़े फासले बड़ा दिए हैं वरना
सब दोस्त साथ ही थे ,अभी कल की ही तो बात हैं
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क्या हुआ जो बदल गयी है दुनिया
मैं भी तो बहोत बदल गया हूँ
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मोहब्बतें तो कभी रास न आई हमको
नफरतों के बीच कभी हम रहे ही नहीं
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तहज़ीब में भी उसकी क्या ख़ूब अदा थी,,
नमक भी अदा किया तो ज़ख़्मों पर छिड़क कर.!!!!!
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हर शख्स दौड़ता हैं यहाँ भीड़ की तरफ
फिर भी चाहता है उसे रास्ता मिले
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हर तरफ हर जगह बेशुमार आदमी ,
फिर भी तनहाइयों का शिकार आदमी
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ख़ुदा को पा गया वाइज़ मगर है ,
ज़रूरत आदमी को आदमी की
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घरों पे नाम थे नामों के साथ ओहदे थे ,
बहुत तलाश किया कोई आदमी न मिला
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वक्त रहता नहीं कहीं छुपकर ,
इस की आदत भी आदमी सी है.
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आदमी आदमी से मिलता है ,
दिल मगर कम किसी से मिलता है.
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एक ही चौखट पे सर झुके
तो सुकून मिलता है
भटक जाते हैं वो लोग
जिनके हजारों खुदा होते हैं
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यह शहर जालिमो का है संभल कर चलना
लोग सीने से लग कर दिल ही निकाल लेते हैं
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मेरी इबाबतो को ऐसे कर कबूल ऐ खुदा
के सजदे में ,मै झुकू तो हर रिश्तों कि जिन्दगी सवर जाये !
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वो लोग भी चलते है आजकल तेवर बदलकर….
जिन्हे हमने ही सिखाया था चलना संभल कर…..
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वाह रे जिन्दगी ! भरोसा एक पल का भी नहीं तेरा,
और नखरे तेरे, मौत से भी ज्यादा…
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भूल जाओ उन तारीखो को जो चाबुक बन कर बरसे
याद रखो वो पल जो तुम्हारी यादो में खुशियो के संग बरसे.
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चंद फासला जरूर रखिए हर रिश्ते के दरमियान
कयोकि बदलने वाले अक्सर बेहद अजीज ही हुआ करते हैं…
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मैं झुक गया तो वो सज़दा समझ बैठे,
मैं तो इन्सानियत निभा रहा था, वो खुद को ख़ुदा समझ बैठे..
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पोंछ लो अपने बहते हुए आँसुओ को
भला कौन रहना पँसद करता है टपकते हुए मकानोँ मेँ
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भरोसा “खुदा” पर है, तो जो लिखा है तकदीर में, वो ही पाओगे।
मगर, भरोसा अगर “खुद” पर है, तो खुदा वही लिखेगा, जो आप चाहोगे ।।
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ज़िन्दगी एक हसीन ख़्वाब है जिसमें जीने की चाहत होनी चाहिये,
ग़म खुद ही ख़ुशी में बदल जायेंगे, सिर्फ मुस्कुराने की आदत होनी चाहिये.
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अजीब तमाशा है मिट्टी के बने लोगों का यारों,
बेवफ़ाई करो तो रोते हैं और वफ़ा करो तो रुलाते हैं!
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कड़ी से कड़ी जोड़ते जाओ तो जंजीर बन जाती है॥
मेहनत पे मेहनत करते रहो तो तक़दीर बन जाती है।”
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दो कदम तो सब चल लेते हे जिंदगी भर का साथ कोइ नही निभाता
अगर रो कर भुलाइ जाती यादें तो हसकर कोइ गम ना छुपाता ।।
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अच्छे ने अच्छा और बुरे ने बुरा जाना मुझे क्यों की –
जीसकी जीतनी जरुरत थी उसने उतना ही पहचाना मुझे।
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सियासत लोगों पर ये एहसान करती है,
पहले आँखें छिनती है फिर चश्मे दान करती है.
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लोग फिर भी घर बना लेते हैं भीगी रेत पर,
जानते हैं बस्तियां कितनी समंदर ले गया।
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तू छोड़ दे कोशिशें…..
इन्सानों को पहचानने की…!
यहाँ जरुरतों के हिसाब से ….
सब नकाब बदलते हैं…!
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अपने गुनाहों पर सौ पर्दे डालकर.
हर शख़्स कहता है-
“ज़माना बड़ा ख़राब है।”
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सर झुकाने से
नमाज़ें अदा नहीं होती …
दिल झुकाना पड़ता है
इबादत के लिए … !
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ग़लतियों से जुदा तू भी नही, मैं भी नही,
दोनो इंसान हैं, खुदा तू भी नही, मैं भी नही … !
” तू मुझे ओर मैं तुझे इल्ज़ाम देते हैं मगर,
अपने अंदर झाँकता तू भी नही, मैं भी नही ” … !!
” ग़लत फ़हमियों ने कर दी दोनो मैं पैदा दूरियाँ,
वरना फितरत का बुरा तू भी नही, मैं भी नही…!!
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एक पथ्थर सिर्फ एक बार मंदिर जाता है और भगवान बन जाता है ..
इंसान हर रोज़ मंदिर जाते है फिर भी पथ्थर ही रहते है ..!!
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एक औरत बेटे को जन्म देने के लिये अपनी सुन्दरता त्याग देती है…….
और
वही बेटा एक सुन्दर बीवी के लिए अपनी माँ को त्याग देता है
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जीवन में हर जगह हम “जीत” चाहते हैं…
सिर्फ फूलवाले की दूकान ऐसी है जहाँ हम कहते हैं कि “हार” चाहिए।
क्योंकि हम भगवान से “जीत” नहीं सकते।
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धीमें से पढ़े बहुत ही अर्थपूर्ण है यह मेसेज…
हम और हमारे ईश्वर, दोनों एक जैसे हैं।
जो रोज़ भूल जाते हैं…
वो हमारी गलतियों को, हम उसकी मेहरबानियों को।
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थक गया हूँ तेरी नौकरी से ऐ जिन्दगी
मुनासिब होगा मेरा हिसाब कर दे…!!”
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दोस्तों से बिछड़ कर यह हकीकत खुली…
बेशक, कमीने थे पर रौनक उन्ही से थी!!
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भरी जेब ने ‘ दुनिया ‘ की पहेचान करवाई
और खाली जेब ने ‘ इन्सानो ‘ की.
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जब लगे पैसा कमाने, तो समझ आया,
शौक तो मां-बाप के पैसों से पुरे होते थे,
अपने पैसों से तो सिर्फ जरूरतें पुरी होती है।
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बिना लिबास आए थे इस जहां में,
बस एक कफ़न की खातिर,
इतना सफ़र करना पड़ा….!!!!
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हज़ारों ऐब ढूँढ़ते है हम दूसरों में इस तरह,
अपने किरदारों में हम लोग,फरिश्तें हो जैसे….!!!!
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ये सोच कर की शायद वो खिड़की से झाँक ले,
उसकी गली के बच्चे आपस में लड़ा दिए मैंने….!!!!
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समय के एक तमाचे की देर है प्यारे,
मेरी फ़क़ीरी भी क्या,
तेरी बादशाही भी क्या….!!!!
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जैसा भी हूं अच्छा या बुरा अपने लिये हूं,
मै खुद को नही देखता औरो की नजर से….!!!!
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मुलाकात जरुरी हैं, अगर रिश्ते निभाने हो,
वरना लगा कर भूल जाने से पौधे भी सुख जाते हैं….!!!!
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नींद आए या ना आए, चिराग बुझा दिया करो,
यूँ रात भर किसी का जलना, हमसे देखा नहीं जाता….!!!!
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दुनिया के बड़े से बड़े साइंटिस्ट,ये ढूँढ रहे है की मंगल ग्रह पर जीवन है या नहीं
पर आदमी ये नहीं ढूँढ रहा कि जीवन में मंगल है या नहीं!
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मोबाइल चलाना जिसे सिखा रहा हूँ मैं,
पहला शब्द लिखना उसने मुझे सिखाया था….!!!!
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बैठ जाता हूं मिट्टी पे अक्सर…
क्योंकि मुझे अपनी औकात अच्छी लगती है..
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यहाँ हर किसी को, दरारों में झाकने की आदत है,
दरवाजे खोल दो, कोई पूछने भी नहीं आएगा….!!!!
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“तू अचानक मिल गई तो कैसे पहचानुंगा मैं,
ऐ खुशी.. तू अपनी एक तस्वीर भेज दे….!!!!
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“इसी लिए तो बच्चों पे नूर सा बरसता है,
शरारतें करते हैं, साजिशें तो नहीं करते….!!!!
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महँगी से महँगी घड़ी पहन कर देख ली,
वक़्त फिर भी मेरे हिसाब से कभी ना चला …!!”
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युं ही हम दिल को साफ़ रखा करते थे ..
पता नही था की, ‘किमत चेहरों की होती है!!’
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“दो बातें इंसान को अपनों से दूर कर देती हैं,
एक उसका ‘अहम’ और दूसरा उसका ‘वहम’……
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पैसे से सुख कभी खरीदा नहीं जाता
और दुःख का कोई खरीदार नहीं होता।
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मुझे जिंदगी का इतना तजुर्बा तो नहीं,
पर सुना है सादगी में लोग जीने नहीं देते।
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“जिंदगी में हद से ज्यादा ख़ुशी और हद से ज्यादा गम का कभी किसी से इज़हार मत करना,
क्योंकि, ये दुनिया बड़ी ज़ालिम है, हद से ज्यादा ख़ुशी पर ‘नज़र’ और हद से ज्यादा गम पर ‘नमक’ लगाती है.”
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पानी दरिया में हो या आँखों में ,
गहराई और राज़ दोनोंमें होते हैं!!
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Gam Na Karna Kabhi Zindgi Me Kyuki Taqdeer Badalti Rehti Hai
Shesha Wahi Rehta Hai Bas Tasveer Badalti Rehti Hai
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Kaun kehta hai ki musafir zakhmi nahin hote;
raaste gawah hain,
bas kambakht gawahi nahin dete..
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HAR WAQT JINDGI SE GILE SIKVE THIK NAHI….
KABHI TO CHHOD DO IN KASTIYO KO MOUJO K SAHAARE….
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“गलत कहेते है लोग की सफेद रंग मै वफा होती है…दोस्तो…!!!!
अगर ऐसा होता तो आज “नमक” जख्मो की दवा होता…..”
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“कई रिश्तों को परखा तो नतीजा एक ही निकला,
जरूरत ही सब कुछ है,मुहब्बत कुछ नहीं होती ।”
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अगर भगवान नहीं हैं
तो जिक्र क्यों. ..?
और अगर भगवान हैं
तो फिर फिक्र क्यों. ..!!
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हर एक इंसान हवा में उडा फिरता हैं…
फिर न जाने धरती पर इतनी भीड़ क्यों है?
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उम्मीद वर्षों से दहलीज़ पर खडी वो मुस्कान है,
जो हमारे कानों में धीरे से कहती है;
“सब अच्छा होगा”
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ठंड के कहर में, वो फकीर भी मर गया….
जो एक रुपये में,लाखों की दुआएँ देता था.
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Kyu Dare, ki Zindagi Me Kya Hoga,
Har Waqt Kyu Soche Ki Bas Bura Hoga,
Badhte Rahe Bas Manzilo Ki ore,
Kuchh Na Bhi Mila To Kya,
Tazurba to naya Hoga.
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Ab tu gam de ya fir khushi
Ye khuda ab jo hai teri marji….
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Hak se de to teri Nafrat bhi Sar Aankho par. . .
Kheriyat me to teri mohabbat bhi manjur nahi. . .
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Meray Bachpan Ke Din Bhi Kya Khoob The…. ,
Be-Namazi Bhi Tha Aur Be-Gunah Bhi…
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जल जाते हैं मेरे अंदाज़ से मेरे दुश्मन क्यूंकि एक मुद्दत से मैंने न मोहब्बत बदली और न दोस्त बदले .!!
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मगरूर हमें कहती है तो कहती रहे दुनिया,
हम मुड़ कर पीछे किसी को देखा नहीं करते…
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जरुरी नहीं रौशनी चिरागो से ही हो.
बेटियां भी घर मैं उजाला करती हैं..
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Qadar karni hai tho jiteji karo,
Kafan uthane ke waqt to Nafrat karne waley bi Ro padte hain..
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kon kehta hai ki aadmi apni kismat khud likhta hai..
agar ye sach hai toh kismat me dard kon likta hai…
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HAR WAQT JINDGI SE GILE SIKVE THIK NAHI….
KABHI TO CHHOD DO IN KASTIYO KO MOUJO K SAHAARE….
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Jo Dil Ke Aainey Mein Ho,
Wohi Hai Pyaar Ke Qaabil
Warna Dewaar Ke Qabil To Har Tasveer hua karti Hai …
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Mere aib mujhe ungliyon pe ginwaao,
Bas meri ghair maujoodgi mein mujhe bura na kehna..!
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ये संगदिलों की दुनिया है;
यहाँ संभल के चलना ग़ालिब;
यहाँ पलकों पे बिठाया जाता है;
नज़रों से गिराने के लिए।
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ये जमीनकी फ़ितरत है की हर चिजको सोख लेती है ,,,
वर्ना ,,
इन आँखों से गिरनेवाले आंसुऔ का एक अलग समंदर होता !!!
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मोहब्बत भी अजीब चीज बनायीं खुदा तूने,
तेरे ही मंदिर में,
तेरी ही मस्जिद में,
तेरे ही बंदे,
तेरे ही सामने रोते हैं,
तुझे नहीं, किसी और को पाने के लिए…!
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कुछ करना ही है तुझको तो ये करम कर दे ..
मेरे खुदा तू मेरी ख्वाहिशों को ही कम कर दे. !
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दर्द तो अकेले ही सहते हैं सभ…
भीड़ तो बस फ़र्ज़ अदा करती है..
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इस कदर भूखा हूँ ऐ मेरे दोस्तों..
कि आजकल धोखा भी खा लेता हूँ!!
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भूख रिश्तों को भी लगती है,
प्यार परोस कर तो देखिये…….!
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एक कब्र पर लिखा था…
“किस को क्या इलज़ाम दूं दोस्तो,
जिन्दगी में सताने वाले भी अपने थे और दफनाने वाले भी अपने थे..”
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मतलबी दुनिया के लोग खड़े हैं, हाथो में पत्थर लेकर,
मैं कहा तक भागू शिशे का मुकद्दर लेकर..
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वो बचपन कितना सुहाना था सर ए आम रोया करते थे …
अब एक आँसू भी गिरे तो लोग हजारों सवाल करते है….
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“आवारगी छोड़ दी हमने
तो लोग भूलने लगे है
वरना
शोहरत कदम चूमती थी
जब हम बदनाम हुआ करते थे…”
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मैं वो शखश नही जो दिल पे खंजर न ले सकूं,
तुम ईतना ईमान रखना, सामने से वार करना…
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मशहूर हो गया हूँ तो ज़ाहिर है दोस्तो
इलज़ाम सौ तरह के मेरे सर भी आयेंगे,
थोड़ा सा अपनी चाल बदल कर चलो,
सीधे चले तो पींठ में खंज़र भी आयेंगे…..
=-=-=-=-=
“रफ़्तार कुछ ज़िन्दगी की यूँ बनाये रख ग़ालिब,
कि
दुश्मन भले आगे निकल जाए
पर
दोस्त कोई पीछे न छूटे…….
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पाना है जो मुकाम वो अभी बाकी है.
अभी तो आए है जमीं पर . आसमान की उडान अभी बाकी है.
अभी तो सुना है लोगो ने सिर्फ मेरा नाम.
अभी इस नाम कि पहचान बनाना बाकी है….
=-=-=-=-=
मुस्कुराना तो मेरी शख्सियत
का एक हिस्सा है दोस्तों…..
तुम मुझे खुश समझ कर
दुआओ में भूल मत जाना….
=-=-=-=-=
“डर मुझे भी लगा फांसला देख कर;
पर मैं बढ़ता गया रास्ता देख कर;
खुद ब खुद मेरे नज़दीक आती गई;
मेरी मंज़िल मेरा हौंसला देख कर।”
=-=-=-=-=
क़दर किरदार की होती है… वरना…
कद में तो साया भी इंसान से बड़ा होता है..
“डर मुझे भी लगा फांसला देख कर;
पर मैं बढ़ता गया रास्ता देख कर;
खुद ब खुद मेरे नज़दीक आती गई;
मेरी मंज़िल मेरा हौंसला देख कर।”
=-=-=-=-=
क़दर किरदार की होती है… वरना…
कद में तो साया भी इंसान से बड़ा होता है..
=-=-=-=-=
मुझे जिंदगी का इतना तजुर्बा तो नहीं,
पर सुना है सादगी मे लोग जीने नहीं देते।
‘हम वो हैं जो हार कर भी यह कहते हैं;
वो मंज़िल ही बदनसीब थी, जो हमें ना पा सकी;
वर्ना जीत की क्या औकात; जो हमें ठुकरा दे..
=-=-=-=-=
हर एक इंसान हवा में उडा फिरता है…
फिर न जाने धरती पर इतनी भीड़ क्यों हैl
=-=-=-=-=
पाना है जो मुकाम वो अभी बाकी है.
अभी तो आए है जमीं पर .
आसमान की उडान अभी बाकी है.
अभी तो सुना है लोगो ने सिर्फ मेरा नाम.
अभी इस नाम कि पहचान बनाना बाकी है…
=-=-=-=-=
मेरे खुदा तू मेरी ख्वाहिशों को ही कम कर दे.. !
=-=-=-=-=
मुझको क्या हक…
मैं किसी को मतलबी कहूँ,
मै खुद ही ख़ुदा को…
मुसीबत में याद करता हूँ
=-=-=-=-=
भरी जेब ने ‘ दुनिया ‘ की पहेचान करवाई…
और
खाली जेब ने ‘ इन्सानो ‘ की……
=-=-=-=-=
Nigaho pe nigaho ke pehere hote hai. In nigaho ke ghav bhi gehere hote hai.
Na jane q koste hai log badsurato ko, Barbad karne wale to khubsurat chehre hote hai.
=-=-=-=-=
Agar khuda nahi to zikre kyu …
aur khuda hai to phir fikre kyu……
=-=-=-=-=
Mulaqate jaruri hei rishte bachaane ke liye
lagaakar bhul jaane se poudhe sukh jaate hei…
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जाम पे जाम पीने का क्या फ़ायदा,
शाम को पी सुबह उतर जाएगीm,
अरे दो बून्द दोस्ती के पी ले
ज़िन्दगी सारी नशे में गुज़र जाएगी..
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खुद में काबिलियत हो तो भरोसा कीजिये साहिब।
सहारे कितने भी अच्छे हो साथ छोड जाते है।
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युं ही हम दिल को साफ़ रखा करते थे…
पता नही था की ‘किमत चेहरों की होती है..!!’
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ऐ अंधेरे देख ले मुँह तेरा काला हो गया ….
माँ ने आँखें खोल दीं घर में उजाला हो गया …
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कब ठीक होता है हाल किसी के पूछने से…..
बस तसल्ली हो जाती है कोई फिकरमंद है अपना…..!!
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कभी फूलों की तरह मत जीना,
जिस दिन खिलोगे… टूट कर बिखर्र जाओगे ।
जीना है तो पत्थर की तरह जियो;
जिस दिन तराशे गए… “खुदा” बन जाओगे ।।
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बुरा नहीं सोचा मैंने कभी भी किसी के लिए……
जिसकी जैसी सोच उसने वैसा ही जाना मुझे ..
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कैद कर दिया सापों को ये कहकर सपेरे ने.
बस अब ईन्सानो को डसने के लिये ईन्सान काफी है.
=-=-=-=-=
मौत का आलम देख कर तो ज़मीन भी दो गज़ जगह दे देती है…
फिर यह इंसान क्या चीज़ है जो ज़िन्दा रहने पर भी दिल में जगह नहीं देता…
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रेगिस्तान भी ” हरा ” होता हे..,
जब ” पर्श ” नोटों से भरा होता हे..!
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शायद ख़ुशी का दौर भी आ जाये एक दिन….
गम भी तो मिल गए थे तमन्ना किये बगैर… !
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नेकियाँ कर के जो दरिया में डाल दोगे अभी;
वही तूफानों में कश्तियाँ बन कर साथ देंगी कभी।
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वो कहते हैं सोच लेना था मुहब्बत करने से पहले।
अब उनको कौन समझाए
सोच कर तो साजिश की जाती हैं मुहब्बत
नहीं।।
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दिमाग से प्यार और दिल से फैसले
दोनों ही बेहतर नहीं होते। …
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कभी कभी पत्थर की ठोकर से भी नहीं आती खरोंच,
और कभी ज़रा सी बात से इंसान बिखर जाता है..
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किसी को क्या हासिल होगा मुझे याद करने से,
मैं तो एक आम इंसान हूँ और यहाँ तो हर किसी को ख़ास की तलाश है….
=-=-=-=-=
चंद सिक्को की विडंबना है, जो खुद का बच्चा रोता छोङ
मालकिन के बच्चो को रोज खिलाने जाती है वो … ।।।
=-=-=-=-=
जिसने इस दौर के इन्सान किये है पैदा
वो मेरा भी खुदा होगा मुझे मंज़ूर नहीं |
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